Shekhawati University,Sikar

Tuesday, 20 October 2015

Story Of KhatuShyam Baba

Story Of KhatuShyam Baba
Khatu Shyam Ji Temple sikar,Rajasthan

About Khatu Shyam JI Temple

हिन्दू धर्म के अनुसार, खाटूश्यामजी कलियुग मे कृष्ण का अवतार है, जिन्होनें श्री कृष्ण से वरदान प्राप्त किया था कि वे कलियुग में उनके नाम से पूजे जायेंगे। कृष्ण बर्बरीक के महान बलिदान से काफ़ी प्रसन्न हुये और वरदान दिया कि जैसे जैसे कलियुग का अवतरण होगा, तुम श्याम के नाम से पूजे जाओगे। तुम्हारे भक्तों का केवल तुम्हारे नाम का सच्चे दिल से उच्चराण मात्र से ही उद्धार होगा। यदि वे तुम्हारी सच्चे मन और प्रेमभाव रखकर पूजा करेंगे तो उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी और सभी कार्य सफ़ल होंगे।

श्याम बाबा की अपूर्व कहानी मध्यकालीन महाभारत से आरम्भ होती है। वे पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे महान पान्डव भीम के पुत्र घटोतकच्छ और नाग कन्या मौरवी के पुत्र है। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान यौद्धा थे। उन्होने युद्ध कला अपनी माँ से सीखी। भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अभेध्य बाण प्राप्त किये और तीन बाणधारी का प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो कि उन्हें तीनो लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे।

महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था, यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुये तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जाग्रत हुयी। जब वे अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचे तब माँ को हारे हुये पक्ष का साथ देने का वचन दिया। वे अपने नीले घोडे, जिसका रंग नीला था, पर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभुमि की और अग्रसर हुये।
सर्वव्यापी कृष्ण ने ब्राह्मण वेश धारण कर बर्बरीक से परिचित होने के लिये उसे रोका और यह जानकर उनकी हंसी भी उडायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है। ऐसा सुनने पर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को ध्वस्त करने के लिये पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापिस तरकस में ही आयेगा। यदि तीनो बाणों को प्रयोग में लिया गया तो तीनो लोकों में हाहाकार मच जायेगा। इस पर कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी की इस पीपल के पेड के सभी पत्रों को छेद कर दिखलाओ, जिसके नीचे दोनो खडे थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तुणीर से एक बाण निकाला और इश्वर को स्मरण कर बाण पेड के पत्तो की और चलाया।
तीर ने क्षण भर में पेड के सभी पत्तों को भेद दिया और कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होनें अपने पैर के नीचे छुपा लिया था, बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिये वर्ना ये आपके पैर को चोट पहुंचा देगा। कृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस और से सम्मिलित होगा तो बर्बरीक ने अपनी माँ को दिये वचन दोहराये कि वह युद्ध में जिस और से भाग लेगा जो कि निर्बल हो और हार की और अग्रसर हो। कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की ही निश्चित है और इस पर अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम उनके पक्ष में ही होगा।
ब्राह्मण ने बालक से दान की अभिलाषा व्यक्त की, इस पर वीर बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया कि अगर वो उनकी अभिलाषा पूर्ण करने में समर्थ होगा तो अवश्य करेगा. कृष्ण ने उनसे शीश का दान मांगा। बालक बर्बरीक क्षण भर के लिये चकरा गया, परन्तु उसने अपने वचन की द्डता जतायी। बालक बर्बरीक ने ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की और कृष्ण के बारे में सुन कर बालक ने उनके विराट रूप के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की, कृष्ण ने उन्हें अपना विराट रूप दिखाया।
उन्होनें बर्बरीक को समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पहले युद्धभूमीं की पूजा के लिये एक वीर्यवीर क्षत्रिय के शीश के दान की आवश्यक्ता होती है, उन्होनें बर्बरीक को युद्ध में सबसे वीर की उपाधि से अलंकृत किया, अतैव उनका शीश दान में मांगा. बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वह अंत तक युद्ध देखना चाहता है, श्री कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होनें अपने शीश का दान दिया। उनका सिर युद्धभुमि के समीप ही एक पहाडी पर सुशोभित किया गया, जहां से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे।
युद्ध की समाप्ति पर पांडवों में ही आपसी खींचाव-तनाव हुआ कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है, इस पर कृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है अतैव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है। सभी इस बात से सहमत हो गये। बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि कृष्ण ही युद्ध मे विजय प्राप्त कराने में सबसे महान पात्र हैं, उनकी शिक्षा, उनकी उपस्थिति, उनकी युद्धनीति ही निर्णायक थी। उन्हें युद्धभुमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखायी दे रहा था जो कि शत्रु सेना को काट रहा था, महाकाली दुर्गा कृष्ण के आदेश पर शत्रु सेना के रक्त से भरे प्यालों का सेवन कर रही थीं।
कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रसन्न हुये और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि कलियुग में हारे हुये का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है।
उनका शीश खाटू में दफ़नाया गया। एक बार एक गाय उस स्थान पर आकर अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी, बाद में खुदायी के बाद वह शीश प्रगट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिये एक ब्राह्मण को सुपुर्द कर दिय गया। एक बार खाटू के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिये और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिये प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर १७२० ई० में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. मंदिर इस समय अपने वर्तमान आकार ले लिया और मूर्ति गर्भगृह में प्रतिष्ठापित किया गया था। मूर्ति दुर्लभ पत्थर से बना है। खाटूश्याम परिवारों की एक बड़ी संख्या के परिवार देवता है।

Festivals At Khatushyamji Temple

Festivals At Khatushyamji Temple
Festivals of Khatu Shyam Ji Temple sikar,Rajasthan

Festivals celebration at Khatu Shyam JI Temple

1.फाल्गुन महोत्सव:-

यह उत्सव फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष नवमी से द्वादशी तक चार दिवसीय मनाया जाता है यह वार्षिक लक्खी मेला है इस मेले में देश-विदेश से 25-30 लाख श्रद्धालू पूजा-अर्चना के लिये आते है।

2.श्याम जयन्ती उत्सव:-

यह उत्सव कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्री श्याम प्रभू के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सम्पूर्ण मंदिर का विशेष श्रृंगार एवं छप्पन भोग लगाया जाता है।

3.झूलामहोत्सव:-

श्रावण मांस की एकादशी को श्री श्याम प्रभू का झूलामहोत्सव मनाया जाता है सम्पूर्ण मंदिर के हरित फूल एवं पतियों से श्रृंगार किया जाता है इसमें भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला से रास एवं कर्मयोग की सभी तरह की झांकियां प्रदर्शित की जाती है।

Aarti Timings of Khatushyam Ji

arti Timings of Khatushyam Ji temple
Khatu Shyam Ji Temple Aarti Timings

Aarti Time Table Of Khatu Shyam Ji Temple

Timings: Morning Time: Winter: 6 am to 12 am, Summer: 4.30 am to 1 pm Evening Time:Winter: 4 pm to 9 pm, Summer: 5 pm to 10 pm
आरती || शीतकाल || ग्रीष्मकाल मंगल आरती || प्रात: 5.30 बजे || प्रात: 4.30 बजे श्रृंगार आरती || प्रात: 8.00 बजे || प्रात: 7.00 बजे भोग आरती || दोहपर 12.30 बजे|| दोपहर 12.30 बजे संध्या आरती ||सांय 6.30 बजे|| सांय 7.30 बजे शयन आरती ||रात्रि 9.00 बजे ||रात्रि 10.00 बजे

Aarti Timings of Khatushyam Ji

arti Timings of Khatushyam Ji temple
Khatu Shyam Ji Temple Aarti Timings

Aarti Time Table Of Khatu Shyam Ji Temple

Timings: Morning Time: Winter: 6 am to 12 am, Summer: 4.30 am to 1 pm Evening Time:Winter: 4 pm to 9 pm, Summer: 5 pm to 10 pm
आरती || शीतकाल || ग्रीष्मकाल मंगल आरती || प्रात: 5.30 बजे || प्रात: 4.30 बजे श्रृंगार आरती || प्रात: 8.00 बजे || प्रात: 7.00 बजे भोग आरती || दोहपर 12.30 बजे|| दोपहर 12.30 बजे संध्या आरती ||सांय 6.30 बजे|| सांय 7.30 बजे शयन आरती ||रात्रि 9.00 बजे ||रात्रि 10.00 बजे

Architecture of the Khatu Shyam Temple Temple

Architecture of the Khatu Shyam Temple Temple
Khatu Shyam Ji Temple Architecture

Important Architectural Characteristics of Khatushyamji

The temple has been built in ancient style of architecture. The shutters of the Sanctum Sanctorum are covered with silver sheet beautifully. Outside is the prayer hall, Jagmohan. The walls of which have beautiful depiction of mythological scenes elaborately painted. The entrance gate and exit gate are made of marble, the brackets of which are of marble having ornamental floral designs.

Originally the temple was built 975 years ago by Smt. Narmada Kanwar and her husband Shri Roop Singh Chauhan. In Samvat 1777 (1720 A.D.), Diwan Abhai Singh at the behest of the then king of Jodhpur, renovated the old temple. The temple took its present shape at this time and the idol was enshrined in the Sanctum Sanctorum. There is an open chowk before the entrance gate of the temple. A big hall for prayers of the size 40'6"x15'4" is also there. In the South-East is the temple of GopinathJi. For the management and disposal of temple work, a seven member committee is constituted. The Public Trust of this committee is registered under registration No. 3/86.

Architecture of the Khatu Shyam ji Temple Temple
Material of Construction:
Khatushyamji's temple, constructed of the famous Makrana marble, is in the heart of the town. Lime mortar, marble and tiles.
Total Construction Time:
8 months in building the original temple
Religious aspects of khatushyam temple:
Lord Shyam is worshipped as Krishna himself. Devotees from far-flung areas and distant places such as Kolkata, Mumbai, Hyderabad, Nepal, Delhi, Uttar Pradesh, Haryana and Panjab assemble here on days held specially sacred to Lord Shyam Ji. In a routine way, hundreds of visitors visit everyday. A number of Dharmashalas (Charity lodges) are available for their comfortable stay. Newly married couples come to pay homage; newly born babies are brought to the deity's temple for Mundan (the first hair shearing) ceremony and Saw Many feasts.
Unique features of the temple:
People filled with devotional fervor come here and take a holy dip in the Shyam Kund. They believe, this sacred bath will relieve them of diseases and contagion.

Festivals & Fairs in khatu shyam Temple (Main Events):

From tenth day to twelfth day of the month of Falgun, a great festival is held and attended by millions of devotees. Other festivals are Janmashtami, Jal Jhulani Ekadashi, Holi, Basant Panchami.

Khatu Shyam Ji Temple In Sikar

Shri Khatu Shyam Ji Temple in Sikar
Khatu Shyam Ji Temple sikar,Rajasthan

About Khatu Shyam JI Temple

The history of Shri Shyam originates from the Mahabharata. Bhima was a Pandava prince, whose son Ghatotkacha was the father of Barbarika, hence Barbarika was the grandson of Bhima. Owing to the fabulous chivalry and prowess of Barbarika, Krishna did not want him to participate in the great war. So, he begged of him his head which Barbarika gave him without any hitch but on the condition that he be allowed to witness the war. Krishna set up his head on a hilltop and also blessed him that he would be deified and worshipped in Kaliyuga like him and that his worshippers shall have their wishes fulfilled. Some 975 years ago the wife of Roopsingh Chauhan saw in her dream that deity instructed him to take his image out of the earth. The indicated place, when dug up, yielded the present idol of Shri ShyamJi, which was enshrined in the temple. That spot is now known as Shyam Kund.

Khatushyamji
Khatushyamji's temple, constructed of the famous Makrana marble, is in the heart of the town. Khatushyamji is considered to be the God of the Kaliyuga. Shyamji is synonymous with Krishna and thus, he is worshipped in the same form. He is also known as khatu naresh, sheesh ke dani,lakhdatar, teen baan dhari,haare ke sahare, leley ke aswari, baba shyam etc.
Shyam Kund
It is the holy pond near the temple from which the Sheesh (Head) was retrieved. It is believed that a dip in this pond cures a person from ailments and brings good health. People come at Falgun Mela from various places here and assume sacred after taking bath. People take water from here which they use to remove several diseases.
Shyam Bagichi
A blessed garden near the temple from where the flowers are picked to be offered to the deity. The great devotee Lt. Alu Singhji's Samadhi is also in the premises.
Gourishankar Temple
This is a Shiva temple which is near Khatushyamji's temple. There is a legend that the Mughal emperor Aurangzeb's soldiers wanted to destroy this temple, and attacked the Shiva Linga with a spear. Fountains of blood appeared from the Shiva Linga, and the soldiers ran away, terrified. One can still see the mark of the spear on the Linga.

Brief of the Diety:

Lord Shyam Ji- his head is worshipped. The idol is made of rare stone and commands tremendous respect from visitors. Shyam Ji is the family god of lacs of families.

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