KhatuShyam baba temple mela/fair- 367 साल से खाटूधाम के शिखर पर लहराता है सिर्फ इनका निशान
खाटूश्याम का फाल्गुन लक्खी मेला परवान है। मेले के दौरान बाबा श्याम को लाखों निशान चढ़ाए जाएंगे, मगर सूरजगढ़ का निशान सबसे खास है। इससे जुड़ा इतिहास भी बेहद रोचक है। यही वो निशान है, जो मेले के दौरान चढ़ाए जाने के बाद सालभर बाबा श्याम के मुख्य शिखरबंद पर लहराता है। झुंझुनूं जिले के सूरजगढ़ से श्याम भक्त हर साल बड़े उत्साह से गाजे-बाजे के साथ अपनी ही धुन नाचते-गाते खाटू पहुंचकर यह निशान लखदातार का अर्पित करते हैं। इसे सूरजगढ़ वालों के निशान के नाम से जाता है। खास बात यह है कि सूरजगढ़ वालों के इस जत्थे में कस्बे व आस-पास के लगभग 15 हजार से ज्यादा श्रद्धालु शामिल होते हैं। ये श्रद्धालु पैदल ही खाटूधाम पहुंचते हैं। निशान चढ़ाने के बाद पैदल ही घर लौटते हैं। यह परम्परा 367 साल से जारी है।
यह है पहचान
सूरजगढ़ वाला निशान लेकर आने वाले श्रद्घालुओं की अलग ही पहचान है। ज्यादातार श्रद्धालु पगड़ी बांधे होते हैं। इसके अलावा सिर पर सिगड़ी भी रखे होते हैं, जिसमें ज्योत जलती रहती है। कहते हैं कि रास्ते में भले ही आंधी-तुफान या बारिश आए, मगर सिगड़ी में बाबा की ज्योत निरंतर जलती रहती है।
दल सूरजगढ़ से रवाना
सूरजगढ़ से बाबा श्याम का निशान लेकर जत्था रवाना हो चुका है। जत्थे ने कस्बे के वार्ड 18 स्थित पुराने श्याम मंदिर से खाटू धाम के लिए रवानगी ली। निशान पदयात्रा के साथ ढप कलाकार भजन व धमाल गाते हुए चल रहे हैं। पदयात्रा का कस्बे में जगह-जगह फूल बरसा कर स्वागत किया जा रहा है। इससे पहले सोमवार रात्रि को मंदिर परिसर में जागरण हुआ। पदयात्रा सूरजगढ़ से सुलताना, गुढ़ा, उदयपुरवाटी, गुरारा, मंढा होते हुए खाटूश्यामजी पहुंचेगी। द्वादशी को यह निशान बाबा श्याम को चढ़ाया जाएगा।
यूं शुरू हुई परम्परा
दंतकथा है कि सीकर के खण्डेला में बाबा श्याम का एक भक्त था। वह खण्डेला से खाटूधाम निशान लेकर जाता था। उसने एक बार दावा किया था कि बाबा श्याम ने सपने में आकर उसे खण्डेला की बजाय सूरजगढ़ से आकर निशान चढ़ाने को कहा। तब वह भक्त सूरजगढ़ में रहने लगा और वहां से निशान आकर चढ़ाने लगा।