Shekhawati University,Sikar

Saturday 16 April 2016

Kamada Ekadashi Vrat Katha

Kamada Ekadashi Vrat Katha In English:

kamada ekadashi

The ekadashi that falls after the navratras is called Kamada ekadashi or Chaitra shukla ekadashi. Chaitra Sudi Ekadashi grants all the wishes.The Amavasya of Chaitra month is the last day of Hindu year and on the next day begins the new year according to Hindu calendar and the Chaitra Navratras
इस एकादशी को 'कामदा एकादशी' कहते है। यह एकादशी चैत्र शुक्ल पक्ष में आती है। इस दिन भगवान वासुदेव का पूजन किया जाता है। व्रत के एक दिन पूर्व (दशमी की दोपहर) जौ, गेहूं और मूंग आदि का एक बार भोजन करके भगवान का स्मरण करना दूसरे दिन अर्थात एकादशी को प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करके भगवान की पूजा अर्चना करें। दिन-भर भजन-कीर्तन कर, रात्रि में भगवान की मूर्ति के समीप जागरण करना चाहिए। दूसरे दिन व्रत का पारण करना चाहिए। जो भक्त भक्तिपूर्वक इस व्रत को करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा सभी पापों से छुटकारा मिलता है। इस व्रत में नमक नहीं खाया जाता है।

कामदा-एकादशी-व्रत


       कामदा एकादशी व्रत चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी को किया जाता है।
प्राचीन काल मे नागपुर नगर मे पुण्डरीक नामक एक नाग राज्य करता था।वहीं ललित नामक एक गन्धर्व अपनी पत्नी ललिता के साथ निवास करता था।इन दोनो मे अतिशय प्रीति थी।वे एक क्षण के लिए भी अलग नहीं होते थे।एक बार नागराज ने संगीत का आयोजन किया।उसमे ललित का गान हो रहा था।वहाँ ललिता नहीं थी।अचानक ललित को ललिता का स्मरण हो गया ; जिससे उसका गान अवरुद्ध होने लगा।इसे देखकर नागराज को क्रोध आ गया।उसने ललित को राक्षस होने का शाप दे दिया।ललित उसी क्षण राक्षस हो गया।
        इसके बाद ललित वन की ओर चला गया।उसके पीछे उसकी पत्नी भी चल पड़ी।वहाँ एक आश्रम दिखाई पड़ा।ललिता उस आश्रम मे गयी और वहाँ विराजमान मुनि को अपनी व्यथा सुनाई।मुनि ने कहा कि आज कामदा एकादशी है।तुम इसका व्रत करो और इसका पुण्यफल अपने पति को दे दो।इससे उसका उद्धार हो जायेगा।ललिता ने वहीं रहकर व्रत किया और दूसरे दिन मुनि के समक्ष ही व्रत का पुण्य अपने पति को प्रदान कर दिया।इस व्रत के प्रभाव से ललित का राक्षसत्व भाव दूर हो गया और उसे पुनः गन्धर्वत्व की प्राप्ति हो गयी।
विधि --
   व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर संकल्प पूर्वक भगवान श्रीहरि का पूजन करे।दिन भर उपवास करे और दूसरे दिन विधिवत् पारणा करे।
माहात्म्य ---
 इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के ब्रह्महत्या सदृश पापों एवं पिशाचत्व-राक्षसत्व आदि दोषों का विनाश हो जाता है।यह एकादशी पाप रूपी ईंधन के लिए दावानल सदृश मानी गयी है।


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